इस वक्त जब देशभर में स्वास्थ्य सेवाएं अमीरों के आलीशान हॉस्पिटल्स तक सीमित होती जा रही हैं, उस समय अकोला जिले से एक ऐसी ख़बर आई है जो उम्मीद की तरह लगती है — गरीब और जरुरतमंद मरीजों के लिए मुख्यमंत्री वैद्यकीय सहायता कक्ष एक संजीवनी साबित हो रहा है।
देवेंद्र फडणवीस की संकल्पना से जन्मी इस योजना का संचालन अकोला में रामेश्वर नाईक के मार्गदर्शन में किया जा रहा है। जिले में इस कक्ष का उद्घाटन खुद पालकमंत्री आकाश फुंडकर ने किया। जिल्हाधिकारी अजित कुंभार और निवासी उपजिल्हाधिकारी विजय पाटील की देखरेख में यह सहायता कक्ष जरूरतमंदों को ₹30 लाख से अधिक की मदद दिला चुका है।
यह सिर्फ एक सहायता कक्ष नहीं है, यह उन अनगिनत परिवारों की आशा है जो हृदय, किडनी, यकृत, बोन मैरो, या कर्करोग जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। यहां डॉ. विशाल येदवर न सिर्फ आर्थिक मदद दे रहे हैं, बल्कि रक्तदान, आपदा प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण जैसे सामाजिक कार्यों को भी आगे बढ़ा रहे हैं।
जिले में 12 रक्तपेढियाँ और 44 प्रमाणित अस्पताल इस योजना से जुड़े हैं। 37 से अधिक रोगियों के प्रस्ताव पहले ही मंजूर हो चुके हैं। लेकिन ध्यान दीजिए, इस मदद के लिए पात्रता की शर्तें हैं — महाराष्ट्र का निवासी होना जरूरी है, सालाना आय ₹1.60 लाख से कम होनी चाहिए, आधार, राशन कार्ड, मेडिकल रिपोर्ट, तहसीलदार से प्रमाणपत्र — इन तमाम दस्तावेजों की पूर्ति होनी जरूरी है।
सवाल यही है कि क्या इस योजना की जानकारी गांव के उस कोने तक पहुँची है, जहाँ एक किसान आज भी इलाज के अभाव में दर्द से कराहता है? जब तक योजनाएँ कागज़ों से निकलकर लोगों के जीवन में राहत नहीं बनतीं, तब तक हम असली “सिस्टम” से जूझते रहेंगे।
लेकिन आज, अकोला से जो खबर आई है, उसने यह भरोसा जरूर दिलाया है — सिस्टम अगर चाहे, तो गरीब की भी सुनी जा सकती है।