आज हम बात कर रहे हैं उस समाज की, जो वर्षों से मेहनत करता आया है, उदरनिर्वाह करता आया है। बकरा बेचने का काम है — न कोई अपराध, न कोई घोटाला। लेकिन इस समाज की गरिमा पर चोट पहुँचाई गई है। और वो भी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो खुद को “जनता का सेवक” कहते हैं — विधायक अर्जुन खोतकर।
एक इंटरव्यू के दौरान खोतकर साहब ने खाटीक समाज को लेकर एक आपत्तिजनक टिप्पणी की। शब्दों की तलवार चलाना आसान होता है, लेकिन वो जब किसी मेहनतकश समाज के आत्मसम्मान पर चलती है, तो दर्द गहरा होता है। खाटीक समाज आहत है, अपमानित है।
इस पूरे प्रकरण पर समाज की तरफ़ से एक सीधा सवाल है – क्या अब विधायक बनने का मतलब ये हो गया है कि जो मुँह में आए, वो बोल दो?
समाज ने इस बयान का विरोध किया है। एक ज्ञापन सौंपा गया है — विनम्रता के साथ, लेकिन स्पष्टता से। माँग की गई है कि अर्जुन खोतकर को समझाया जाए, उनसे जवाब माँगा जाए और इस मुद्दे पर कार्यवाही की जाए।
इस देश में कई समाज हैं, कई काम हैं, लेकिन इज़्ज़त सबकी बराबर है। और इज़्ज़त जब शब्दों से घायल होती है, तो आवाज़ उठाना ज़रूरी होता है।