अकोला में एक ऐसी फिल्म की घोषणा हुई है जो समाज की आंखों में झणझणीत अंजन घालने का काम करेगी। नाम है – “बांझ“। पर असल में यह सिर्फ एक शब्द नहीं, सदियों से महिला पर थोपा गया कलंक है। और इस कलंक को चुनौती देने के लिए भीमपुत्र टेक्सास गायकवाड ने इस फिल्म का निर्माण किया है।
पत्रकार परिषद में अभिनेता बाबा वानखडे ने कहा, ये फिल्म उस स्त्री की कहानी है जिसे सिर्फ इसलिए अपमानित किया गया क्योंकि वह मां नहीं बन सकी। मगर क्या मां बनने की जिम्मेदारी सिर्फ स्त्री की होती है?
इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे समाज आज भी शिक्षित होकर भी अज्ञानता की चादर ओढ़े हुए है। एक महिला की गरिमा सिर्फ उसकी कोख से नहीं, उसके संघर्ष, उसकी संवेदना और उसकी अस्मिता से बनती है।
“बांझ” नहीं, वह औरत समाज की सबसे मजबूत नींव है।
अब सवाल सिर्फ फिल्म का नहीं, समाज के सोच बदलने का है।